एक अलग ही अनुभूती दे गया हैं शहर बनारस

एक अलग ही अनुभूती दे गया हैं शहर बनारस (12/2/23)

छोटे मोटे रास्ते हमें भी ले गये साथ अपने l 
कुछ बिना मांगे पुरे कर दिये कितने से सपने l
अब फिर से आने की जैसे लगा दी हैं आस l
एक अलग ही अनुभूती दे गया हैं शहर खास ll1ll

चले,दौडे, भागे और बहुत कुछ सा जान पाये हम l
थोडासा बनारस अपने साथ मानो ले आये हैं हम l
अब फिर से आने की जैसे लगा दी हैं आस
एक अलग ही अनुभूती दे गया हैं शहर खास ll2ll

जो भी खा पाये वो लजीज और भरा था पूरा स्वाद l
अपनी छाप हम पर छोड गया ये शहर निर्विवाद l
अब फिर से आने की जैसे लगा दी हैं आस l
एक अलग ही अनुभूती दे गया हैं शहर खास ll3ll 

भीड-भाड में खुद ही को हमने खोया हुआ हैं पाया l
जुडा होना जरुरी हैं सबसे शायद फिर समझ आया l
अब फिर से आने की जैसे लगा दी हैं आस l
एक अलग ही अनुभूती दे गया हैं शहर खास ll4ll

वो खाली रास्ते मानो हमसे कितना कुछ कह गये देर रात l
कह देना बेझिझक मन में जो भी कभी उमड आये बात l
अब फिर से आने की जैसे लगा दी हैं आस l
एक अलग ही अनुभूती दे गया हैं शहर खास ll5ll

कुछ दिव्य और अद्भुत ऊर्जा दे गये हैं बनारस के सभी घाट l
नतमस्तक हुआ मैं देख गंगामैय्या विशाल भव्य अफाट l 
अब फिर से आने की जैसे लगा दी हैं आस l
एक अलग ही अनुभूती दे गया हैं शहर खास ll6ll

एक अलग रिश्ता जुड गया हैं बनारस शहर से क्या कहे  l
बाबा विश्वनाथ के दरबार में अब हम बार बार आते रहे l
अब फिर से आने की जैसे लगा दी हैं आस l
एक अलग ही अनुभूती दे गया हैं शहर खास ll7ll

-- प्रा. डॉ. सचिन शंकर गाडेकर

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