बन गया है आलम इसकदर !!! १६/७/१६

बन गया है आलम इसकदर !!! १६/७/१६

बन गया ये दिल अब एक अकेले खंडहर वीरान सा |
हर दूसरा अंदरतक झांकने की हिमायत जो कर रहा है |

बन गई  है जुबान अब बेलगाम इस कदर घोडे सी |
हर किसी को चीरती हुई जखम दे जाती है अंदरतक |

बन गये है खुले कान भी कुडे दान से  आजकल |
हर गंदी चीज बाकायदा आ गिरती है बिना विलंब |

बन गया है ये मासूम चेहरा खुली सी किताब इस तरह |
हर कोई पढ जाता है बहता सैलाब भावनाओंका बिना बताये |

बन गये है कदम अब मशीन बिनरुके चलने वाली  |
बस मिल नहीं रहा मंझील का ठिकाना कोई चाह्कर भी |

बन गई है धडकन बेकरार मेहबूब सी अकेली अकेली |
बात बात पर मात खाती, हारती शातिर किसी दिमागी षडयंत्रोसे |

बन गई है सांसे अब भरा भरा सा बोझ धरती पार |
चल रही है ठीकठाक बस यही गनीमत है और क्या..
                                                         


                                                              --सचिन गाडेकर 

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